आज हर कोई सोशल मीडिया पर हंसी-मज़ाक में मशगूल है। कहीं ड्रम पर जोक्स बन रहे हैं, कहीं सीमेंट पर मीम्स बनाए जा रहे हैं। लेकिन क्या किसी ने उस दर्द को महसूस किया।

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नमस्कार🙏

सौरभ का दर्द और समाज की बेरुख़ी👇

आज हर कोई सोशल मीडिया पर हंसी-मज़ाक में मशगूल है। कहीं ड्रम पर जोक्स बन रहे हैं, कहीं सीमेंट पर मीम्स बनाए जा रहे हैं। लेकिन क्या किसी ने उस दर्द को महसूस किया।जो सौरभ ने अपनी ज़िंदगी के आखिरी दिनों में झेला? क्या किसी ने उस तकलीफ को समझा, जो उसकी आत्मा ने सही।

सौरभ, एक साधारण इंसान, जिसने अपनी ज़िंदगी किसी और के लिए जी। शादी के बाद उसने अपनी मर्चेंट नेवी की नौकरी छोड़ दी, सिर्फ इसलिए कि जिसे उसने अपना सब कुछ मान लिया, वह खुश रहे। उसने अपना पूरा परिवार छोड़ दिया, क्योंकि कभी इसी लड़की के लिए अपने अपनों से लड़ गया था। लेकिन क्या मिला उसे बदले में? रिश्तों में खटास ताने, तिरस्कार और अंत में एक दर्दनाक मौत।

वह इंसान जिसने अपने रिश्ते को निभाने के लिए अपनी पूरी दुनिया बदल दी, वही इंसान अपनी ही दुनिया में सबसे अकेला हो गया। सालों से सब कुछ जानते हुए भी, वह तलाक नहीं ले सका, सिर्फ इसलिए कि उसकी मासूम बेटी के रिश्तों पर कोई असर न पड़े। उसने अपने दर्द को खुद में समेट लिया, हर रोज़ मरता रहा, लेकिन दुनिया को कभी दिखाया नहीं। और फिर, एक दिन, जिस लड़की के लिए उसने अपनी पूरी दुनिया दांव पर लगा दी थी, उसी ने उसे अपने प्रेमी के साथ मिलकर मार डाला।

पहला वार सीधा दिल पर, जहां उसकी धड़कन थी, जिसने कभी इसी लड़की के लिए तेज़ी से धड़कना शुरू किया था। और जब सिर्फ एक वार से मन नहीं भरा, तो शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए, ड्रम में पैक कर दिया गया। सोचकर ही रूह कांप जाती है—जिसने कभी अपनी पत्नी की खुशी के लिए खुद को मिटा दिया, उसी के हाथों उसकी ज़िंदगी इस बेरहमी से खत्म हो गई।

लेकिन समाज? वह समाज, जो अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने की बातें करता है, वह कहां है? क्या किसी ने इस दर्द को महसूस किया? क्या किसी ने सोशल मीडिया पर इन दरिंदों के लिए फांसी की मांग की? क्या किसी ने कैंडल मार्च निकाला?

👉नहीं!

👉आज बस जोक्स बन रहे हैं, मीम्स शेयर हो रहे हैं। सौरभ का दर्द मज़ाक बनकर रह गया है। कुछ दिन तक यह मुद्दा ट्रेंड करेगा, फिर जैसे ही सोशल मीडिया की नज़रों से उतरेगा, कोई और सौरभ किसी और ड्रम में बंद मिलेगा।

ये सिर्फ सौरभ की कहानी नहीं है, ये उस समाज की सच्चाई है, जो पीड़ित की चीखों को नज़रअंदाज़ कर अपराधियों पर जोक्स बनाकर हंसता है। आज सौरभ के लिए इंसाफ़ नहीं माँगा गया, तो कल यही हाल किसी और के साथ होगा। कब तक हम बस तमाशबीन बने रहेंगे? कब तक हम सिर्फ मीम्स और जोक्स के ज़रिए इस दर्द को हल्का करने की कोशिश करेंगे?

 

अगर सौरभ के लिए इंसाफ़ नहीं मिला, तो कल कोई और सौरभ इसी तरह बेबस, लाचार, और दर्द में डूबा, अपने ही घर में घुट-घुट कर मरने को मजबूर होगा। और हम? हम फिर से चुप रहेंगे, फिर से मज़ाक बनाएंगे, और फिर से किसी और की बर्बादी का तमाशा देखेंगे।

क्या अब भी हम जागेंगे, या तब तक इंतज़ार करेंगे, जब तक कोई अपना सौरभ न बन जाए

जय हिंद 🇮🇳 अनीता सिंह NSS NEWS

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