



चलो बात करते हैं रूह अफजा के बारे में।
हमदर्द रूह अफजा की शुरुआत 1906 में हकीम हाफिज अब्दुल मजीद द्वारा एक यूनानी चिकित्सक द्वारा की गई थी। गर्मी से राहत के लिए एक ताजगी भरे रूप में तैयार किया था। जो फलों, जड़ी बूटियां, और फूलों के अर्क का एक मिश्रण है।
प्रारंभ में हमदर्द दवा खाना में बनवाया गया था। हकीम मस्जिद ने इसे एक यूनानी चिकित्सा के रूप में बनाया। लेकिन यह जल्द ही लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया। और बाद में एक पसंदीदा शरबत बन गया। हकीम अब्दुल मजीद ने रूह अफजा को यूनानी दवा के रूप में अपने दवा खाने में ही पहली बार बनाई थी। रूह अफजा सिर्फ दवा न होकर लोगों को गर्मी से राहत देने का नायाब नुकसान बन गया। और हमदर्द दवा खाना से बड़ी कंपनी बन गई। साल 1906 में हाफिज ने फौज काजी इलाके में एक हर्बल की दुकान खोलने की सूची। साल 1920 तक उनकी दुकान एक प्रोडक्शन हाउस के तौर पर बदल चुकी थी। उन्होंने कुछ औषधि और पारंपरिक यूनानी सिरप की मदद से एक घोल तैयार किया।जिसे रूह अफजा नाम दिया गया। उर्दू भाषा में इसका अर्थ रूह को तरो ताजा करने वाला होता है। इससे शरबत से होने वाली इनकम का बहुत बड़ा हिस्सा हमदर्द के द्वारा चलाए जा रहे मदरसों दवाखानों को बनने और चलने वाले संस्थानों पर खर्च किया जाता है। इस वक्त बाजार में कई प्रकार के शरबत हैं। लेकिन जो पकड़ और स्वाद के मामले में रूह अफजा की पकड़ है वह कोई हासिल नहीं कर पाया। शरबत की बहुत सी नकल आई पर असल को टक्कर नहीं दे पाई।