



माता पार्वती को हुई अखंड सौभाग्य की प्राप्ति
पौराणिक कथाओं के मुताबिक,करवा चौथ का व्रत सबसे पहले माता पार्वती ने रखा था| पर्वत राज हिमालय और देवी मैनावती की पुत्री पार्वती ने नारद जी की सलाह पर भगवान शिव पति के रूप में पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी|लेकिन शिवजी न तो प्रसन्न हो रहे थे और न ही दर्शन दे रहे थे तब माता पार्वती ने कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि निर्जला उपवास रखकर शिव साधना की थी कहते हैं इसी व्रत से उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई थी इसलिए सुहागने अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना से यह व्रत करती है| और देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती है|
करवा चौथ ,जो परंपरागत रूप से सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और स्वास्थ्य के लिए मनाया जाता है आज के समय में और पुराने समय में कुछ प्रमुख भिन्नताओं से गुजरा है
कुछ नहीं कुछ ज्यादा ही बदलाव आज की पीढ़ी में देखने को मिलते हैं|पुराने समय में करवा चौथ को पारंपरिक रूप से एक घरेलू त्यौहार के रूप में मनाया जाता था और पारिवारिक और सामुदायिक स्तर पर मनाया जाता था, जहां सभी महिलाएं एक साथ इकट्ठा होती थी और पूजा करती थी|और साधारण रूप से एक दूसरे को उपहार दिए जाते थे जैसे कि कपड़े मिठाई या पूजा सामग्री|पति और पत्नी का आपस में सच्चा प्रेम जिसमें कि केवल एक दूसरे के लिए समर्पण और व्रत के महत्व को समझना यह सर्वप्रिय होता था|आज के समय में यह त्यौहार आधुनिक दृष्टिकोण और फैशन का प्रतीक बन गया है|आजकल प्रतिस्पर्धा बहुत हो गई है इन त्योहारों में एक दूसरे से अधिक मूल्यवान वस्त्र व गहने पहनने तो है ही साथ-साथ दिखाना भी है सोशल मीडिया के द्वारा ज्यादा सहयोग दिख रहा है टीवी शो और बॉलीवुड फिल्मों ने इस त्यौहार को और अधिक ग्लैमरस बना दिया है|आजकल की महिलाएं एक दूसरे की देखा देखी अच्छे गिफ्ट की फरमाइश भी करने लगी है चाहे पारिवारिक स्थिति कैसी भी हो लेकिन इन सब के बावजूद आज के समय में यह त्योहार समानता का प्रतीक भी बन गया है|
अब यह त्यौहार कई जोड़े मिलकर एक साथ मनाते हैं एक साथ उपवास रखते हैं और इसे अपने रिश्ते के प्रति समर्पण प्रेम का एक प्रतीक मानते हैं|
करवा चौथ में इन आधुनिक बदलावों के बावजूद इसकी मूल भावना जो प्रेम, समर्पण और परंपराओं से जुड़ी है अभी भी कायम है|
.. अनीता चौहान की कलम से